कबीर दास जी के 100+ प्रेरणादायक दोहे: जीवन, प्रेम और सच्चाई की सीख
कबीर दास जी के 100 से अधिक दोहे और उनके अर्थ दिए गए हैं: कबीर दास जी भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनके दोहे जीवन के गहरे अर्थों और सच्चाइयों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। (Kabir Das Ji Ke Dohe)
इस ब्लॉग पोस्ट में कबीर दास जी के 110 दोहों का संग्रह प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन की सच्चाई, प्रेम, और आध्यात्मिकता की गहराई को दर्शाते हैं। कबीर दास जी, जिन्हें भारतीय संत और कवि माना जाता है, ने अपने दोहों के माध्यम से सरल लेकिन गहन संदेश दिए हैं। प्रत्येक दोहे के साथ उसका अर्थ भी दिया गया है, जिससे पाठक आसानी से उनके विचारों को समझ सकें।
ये दोहे न केवल प्रेरणा देते हैं, बल्कि मन की शांति, सच्चाई, और प्रेम की महत्वता को भी उजागर करते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट का उद्देश्य पाठकों को कबीर दास जी की शिक्षाओं से जोड़ना और उनके जीवन दर्शन को समझना है। चाहे आप आध्यात्मिकता की खोज में हों या बस ज्ञान की एक नई दृष्टि प्राप्त करना चाहते हों, ये दोहे आपको मार्गदर्शन और प्रेरणा देंगे
दोहा 1:
दोहा:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोय।
अर्थ:
मैं जब बुराई देखने निकला, कोई बुरा नहीं मिला।
जब मैंने अपने मन की ओर देखा, तो मुझसे बुरा कोई नहीं है।
—
दोहा 2:
दोहा:
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय।
अर्थ:
हे साईं, मुझे इतना दो कि मेरे परिवार का पालन हो सके।
मैं भी भूखा न रहूं और साधु भी भूखा न रहे।
—
दोहा 3:
दोहा:
पीपल की छाया में, बैठ कर सुख पाए।
माया जाल में फंसा, मनुष्य दुख सह पाए।
अर्थ:
पीपल की छांव में बैठकर सुख का अनुभव करें।
लेकिन माया के जाल में फंसा मनुष्य दुख उठाता है।
—
दोहा 4:
दोहा:
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
सब कुछ है, सबकी हरि, हरि में है सब कछु।
अर्थ:
जब मैं था, तब भगवान नहीं थे; अब भगवान हैं, मैं नहीं हूं।
सब कुछ है, सबमें भगवान हैं, भगवान में ही सब कुछ है।
—
दोहा 5:
दोहा:
बोली तो सब बोलें, पर कोई सुनता नहीं।
बोलनी में है मधुरता, पर कोई जानता नहीं।
अर्थ:
हर कोई बोलता है, पर कोई सुनता नहीं।
बोलने में मिठास है, पर कोई उसकी महत्ता नहीं जानता।
—
दोहा 6:
दोहा:
धोनी देख कर सोचिए, बिन हाथों काम न हो।
बिन साईं की कृपा से, सब कुछ अधूरा हो।
अर्थ:
धोनी देखकर सोचें, बिना हाथों के काम नहीं होता।
भगवान की कृपा के बिना सब कुछ अधूरा रहता है।
—
दोहा 7:
दोहा:
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए।
अर्थ:
गुरु और भगवान दोनों खड़े हैं, किसके चरणों में जाऊं?
मैं अपने गुरु पर बलिहार हूं, क्योंकि उन्होंने भगवान का ज्ञान दिया।
—
दोहा 8:
दोहा:
साधु संगति साधु की, सब सुख लाए।
साधु संगति संग रहकर, दुख दूर भुलाए।
अर्थ:
साधु की संगति से सभी सुख प्राप्त होते हैं।
साधु के साथ रहने से दुख दूर हो जाते हैं।
—
दोहा 9:
दोहा:
हरि जन, हरि संगति, सुख भरे संसार।
मन चंगा तो कठौती में, गंगा के जल समान।
अर्थ:
भगवान और साधु की संगति से संसार में सुख बढ़ता है।
अगर मन शुद्ध है, तो कठौती में गंगा के जल के समान है।
—
दोहा 10:
दोहा:
जो उग्यो सो पनिहारी, जो जो पूज्यो सो भरी।
सांप बिन बिन बिन पैर, भजन में हरि का धरी।
अर्थ:
जो बोया गया है, वही फल देगा; जो पूजा गया है, वही भरा रहेगा।
सांप बिना डसे भी भजन में भगवान का ध्यान रखें।
—
दोहा 11:
दोहा:
कबीर, जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
सब कुछ है, सबकी हरि, हरि में है सब कछु।
अर्थ:
जब मैं था, तब भगवान नहीं थे; अब भगवान हैं, मैं नहीं हूं।
सब कुछ है, सबमें भगवान हैं, भगवान में ही सब कुछ है।
—
दोहा 12:
दोहा:
सुखिया सब संसार है, दुखिया मैं एक।
सुख का नाश करूं कैसे, दुख का नाश न सकें।
अर्थ:
संसार के सभी सुखी हैं, लेकिन मैं अकेला दुखी हूं।
मैं सुख का नाश कैसे करूं, जबकि दुख का नाश नहीं कर पा रहा हूं।
—
दोहा 13:
दोहा:
बिन पानी सब सुनसान, नीर न होत कोई।
सद्गुरु की महिमा का, नित नित गुनगुन करो।
अर्थ:
बिना पानी सब सूना है, बिना जल के कुछ भी नहीं है।
सद्गुरु की महिमा का हमेशा गुणगान करते रहो।
—
दोहा 14:
दोहा:
जो सच्चा सो तुझमें, तुझसे और न कोई।
तू है सच्चा, तू है सुंदर, तू है मेरा भाई।
अर्थ:
जो सच्चाई है, वह तुझमें है; तेरे सिवा कोई और नहीं है।
तू सच्चा है, तू सुंदर है, तू मेरा भाई है।
—
दोहा 15:
दोहा:
मोह बन्धन तोड़कर, साधु संगति कर लो।
संसार की माया से, तुम मुक्त हो जाओ।
अर्थ:
मोह के बंधनों को तोड़कर साधु की संगति करो।
संसार की माया से तुम मुक्त हो जाओ।
—
दोहा 16:
दोहा:
गागर में जल भरकर, किसे दिखाना जाय।
जो भीतर भरा है, वह बाहर दिखा नहीं।
अर्थ:
गागर में जल भरकर किसे दिखाना है?
जो अंदर भरा है, वह बाहर नहीं दिखता।
—
दोहा 17:
दोहा:
संसार में हर कोई, दौड़ता है सुख के लिए।
सुख का जो चूरा है, वह सबका अपना है।
अर्थ:
संसार में हर कोई सुख के लिए दौड़ता है।
लेकिन सुख का जो सच्चा चूरा है, वह सभी का अपना है।
—
दोहा 18:
दोहा:
कंठ में गुणगुण हो, मन में भक्ति हो।
तब ही सच्चा साधक, हरि का प्यारा हो।
अर्थ:
अगर कंठ में भक्ति है और मन में श्रद्धा है,
तो तभी सच्चा साधक भगवान का प्रिय होता है।
—
दोहा 19:
दोहा:
जिनके मन में सच्चाई, उनकी गति ऊंची।
जो जग में हैं सुखी, उनका भाग्य सच्चा।
अर्थ:
जिनके मन में सच्चाई है, उनकी आत्मा ऊंची होती है।
जो संसार में सुखी हैं, उनका भाग्य भी सच्चा होता है।
—
दोहा 20:
दोहा:
कबीर, मन की माया को, मिटा दो एक बार।
जब मन मुक्त होगा, तब मिलेगा सच्चा प्यार।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन की माया को एक बार मिटा दो।
जब मन मुक्त होगा, तब सच्चा प्यार मिलेगा।
—
दोहा 21:
दोहा:
सांसों का खेल है, फिर क्यों घबराते हो।
जो जन्मा है, वह मरेगा, फिर क्यों डराते हो।
अर्थ:
सांसों का यह खेल है, फिर तुम क्यों घबराते हो?
जो जन्मा है, वह मरेगा, फिर क्यों डरते हो?
—
दोहा 22:
दोहा:
खुदा की खोज में, क्यों भटकते हो।
अपने भीतर जाकर, खुदा को पाते हो।
अर्थ:
भगवान की खोज में तुम क्यों भटकते हो?
अपने भीतर जाकर ही तुम भगवान को पाते हो।
—
दोहा 23:
दोहा:
कबीर, ज्यों पानी में, पानी का स्वरूप।
साधु संगति में, साधु का स्वरूप।
अर्थ:
जैसे पानी में पानी का ही स्वरूप होता है,
वैसे ही साधु की संगति में साधु का स्वरूप प्रकट होता है।
—
दोहा 24:
दोहा:
जो सुख खोजता है, दुखी वही बनता।
जो दुख को समझता है, सुखी वही रहता।
अर्थ:
जो सुख की खोज में है, वही दुखी बनता है।
जो दुख को समझता है, वही सच्चे सुख का अनुभव करता है।
—
दोहा 25:
दोहा:
कबीर, मन की माया को, सच्चाई में ढल।
सच्चाई की राह पर, चलो तो सुख मिले।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन की माया को सच्चाई में बदलो।
अगर तुम सच्चाई की राह पर चलोगे, तो तुम्हें सुख मिलेगा।
—
दोहा 26:
दोहा:
धन दौलत का मोह छोड़, साधु बनकर जी लो।
साधु का जीवन सुखमय, सच्चाई से जी लो।
अर्थ:
धन और दौलत का मोह छोड़कर साधु बनकर जी लो।
साधु का जीवन सुखमय होता है, सच्चाई से जी लो।
—
दोहा 27:
दोहा:
खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे।
जो कुछ साथ लाए हैं, वही संग जाएंगे।
अर्थ:
हम खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ जाएंगे।
जो कुछ हम साथ लाए हैं, वही हमारे साथ जाएगा।
—
दोहा 28:
दोहा:
कबीर, माया मोहे छोड़, सच्चाई की राह।
जो सच्चाई को पहचान ले, वही सच्चा ज्ञान।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, माया को छोड़कर सच्चाई की राह अपनाओ।
जो सच्चाई को पहचानता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
—
दोहा 29:
दोहा:
हिरा जड़ में ढूंढते, मोती गहरे सागर में।
सच्चाई को खोजने में, बेकार हैं हम सब।
अर्थ:
जड़ में हीरा खोजते हैं और मोती गहरे सागर में।
सच्चाई को खोजने में हम बेकार हैं।
—
दोहा 30:
दोहा:
जो जोड़ा है मन से, वही सच्चा साथी।
जो संसार में है, वह सभी से है गहरी।
अर्थ:
जो मन से जोड़ा है, वही सच्चा साथी होता है।
जो संसार में है, वह सभी के साथ गहराई से जुड़ा होता है।
—
दोहा 31:
दोहा:
साधु का संग करें, मन को शुद्ध बनाए।
शुद्ध मन से मिलते हैं, हरि से सुख पाए।
अर्थ:
साधु की संगति करने से मन शुद्ध होता है।
शुद्ध मन से ही हम भगवान से मिलते हैं और सुख प्राप्त करते हैं।
—
दोहा 32:
दोहा:
कबीर, प्रेम बिना सब, है जैसे सूखा माटी।
प्रेम का जल भरकर, जीवन को है महकाती।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, प्रेम के बिना सब सूखी मिट्टी की तरह है।
प्रेम का जल भरकर ही जीवन को सुगंधित किया जा सकता है।
—
दोहा 33:
दोहा:
जो चुप रहकर साधना, वो सच्चा साधक।
बोलने से क्या होगा, जब मन है विक्षिप्त।
अर्थ:
जो चुप रहकर साधना करते हैं, वे सच्चे साधक होते हैं।
बोलने से कुछ नहीं होगा, जब मन विचलित है।
—
दोहा 34:
दोहा:
माया की लहरों में, डूबा है हर एक।
जो माया से बाहर निकले, वही सच्चा नेक।
अर्थ:
माया की लहरों में हर कोई डूबा हुआ है।
जो माया से बाहर निकलता है, वही सच्चा नेक व्यक्ति है।
—
दोहा 35:
दोहा:
दुख में जो सुख देखे, वही सच्चा ज्ञानी।
सुख में जो दुख देखे, वही है अभागा।
अर्थ:
जो दुख में सुख देखता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
जो सुख में भी दुख देखता है, वही अभागा है।
—
दोहा 36:
दोहा:
संसार की माया में, सबका मन भटकता।
जो माया को समझे, वह सच्चा मन भटकता।
अर्थ:
संसार की माया में सबका मन भटकता है।
जो माया को समझता है, वह सच्चे मन से भटकता है।
—
दोहा 37:
दोहा:
कबीर, जीवन की राह में, सच्चाई का दीप जलाए।
जिसने सत्य को पाया, वही सच्चा सुख पाए।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, जीवन की राह में सच्चाई का दीप जलाना चाहिए।
जिसने सत्य को पाया है, वही सच्चा सुख प्राप्त करता है।
—
दोहा 38:
दोहा:
जो मीठा बोले, वह सच्चा प्रेमी।
जो तकरार करे, वह है झगड़ालू।
अर्थ:
जो मीठा बोलता है, वह सच्चा प्रेमी है।
जो तकरार करता है, वह झगड़ालू होता है।
—
दोहा 39:
दोहा:
कबीर, मन को साध लो, माया से दूर कर लो।
जब मन शुद्ध होगा, तब हरि को भी पा लोगे।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन को साध लो और माया से दूर कर लो।
जब मन शुद्ध होगा, तब तुम भगवान को भी पा लोगे।
—
दोहा 40:
दोहा:
अधूरे ज्ञान में मत डूबो, सच्चाई की ओर बढ़ो।
सच्चाई का मार्ग ही, सुख की ओर ले जाता।
अर्थ:
अधूरे ज्ञान में मत डूबो, सच्चाई की ओर बढ़ो।
सच्चाई का मार्ग ही तुम्हें सुख की ओर ले जाएगा।
—
दोहा 41:
दोहा:
संसार की जंजीरों में, मत खुद को फंसाओ।
जो मुक्त है माया से, वही सच्चा सुख पाओ।
अर्थ:
संसार की जंजीरों में मत फंसो।
जो माया से मुक्त है, वही सच्चा सुख प्राप्त करता है।
—
दोहा 42:
दोहा:
कबीर, सच्चाई का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर, हरि का मिलन पाओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, सच्चाई का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर चलने से भगवान का मिलन होता है।
—
दोहा 43:
दोहा:
ब्रह्मा के भीतर है, वही सच्चा स्वरूप।
जो सच्चाई को जान ले, वही है ज्ञान का जाम।
अर्थ:
ब्रह्मा के भीतर ही सच्चा स्वरूप है।
जो सच्चाई को जान ले, वही सच्चा ज्ञानी है।
—
दोहा 44:
दोहा:
जो जिए सच्चे मन से, वही जीवन है सुखी।
जो माया में फंसे हैं, वो हैं दुखी सभी।
अर्थ:
जो सच्चे मन से जीते हैं, वही जीवन में सुखी होते हैं।
जो माया में फंसे हैं, वे सभी दुखी होते हैं।
—
दोहा 45:
दोहा:
कबीर, मन को साध कर, प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरपूर जीवन, सच्चा सुख दे जाएगा।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन को साधकर प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरा जीवन ही सच्चा सुख देता है।
—
दोहा 46:
दोहा:
ध्यान से जो देखता है, वही सच्चा साधक।
जो भटकता है माया में, वह है बुरा भाग्य।
अर्थ:
जो ध्यान से देखता है, वही सच्चा साधक है।
जो माया में भटकता है, वह बुरे भाग्य का मालिक है।
—
दोहा 47:
दोहा:
जो मन में संतोष है, वही सच्चा सुखी।
जो इच्छाओं में लिपटा, वह है दुखी भारी।
अर्थ:
जो मन में संतोष रखता है, वही सच्चा सुखी होता है।
जो इच्छाओं में लिपटा रहता है, वह भारी दुखी होता है।
—
दोहा 48:
दोहा:
संसार की माया को, जैसे पानी समझो।
पानी में लहरें हैं, पर गहराई में कुछ नहीं।
अर्थ:
संसार की माया को पानी की तरह समझो।
पानी में लहरें हैं, लेकिन गहराई में कुछ नहीं है।
—
दोहा 49:
दोहा:
कबीर, सच्चाई का जीवन, हर किसी को सिखाओ।
सच्चाई में है सुख, सभी को बताओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, सच्चाई का जीवन सबको सिखाओ।
सच्चाई में ही सुख है, यह सभी को बताओ।
—
दोहा 50:
दोहा:
जो दिल से कर दे प्रेम, वही सच्चा प्यारा।
जो दिखावे का करे प्रेम, वह है सच्चा दुश्वारा।
अर्थ:
जो दिल से प्रेम करता है, वही सच्चा प्यारा होता है।
जो दिखावे का प्रेम करता है, वह सच्चा दुश्वारा होता है।
—
दोहा 51:
दोहा:
गुरु कृपा से ज्ञान मिले, हरि का नाम सहे।
नाम में है शक्ति, सच्चा सुख लहे।
अर्थ:
गुरु की कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है, हरि का नाम सहेजना चाहिए।
नाम में शक्ति है, जो सच्चा सुख देता है।
—
दोहा 52:
दोहा:
कबीर, जो मन शुद्ध करे, वह सुखी जीवन जिये।
जो मन को वश में करे, हरि से नाता जोड़े।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, जो मन को शुद्ध करता है, वह सुखी जीवन जीता है।
जो मन को वश में करता है, वह भगवान से नाता जोड़ता है।
—
दोहा 53:
दोहा:
सच्चाई का मेला है, सच्चे प्रेम का रंग।
जो रंग में रंग जाए, वही सच्चा संग।
अर्थ:
सच्चाई का मेला है, जिसमें सच्चे प्रेम का रंग है।
जो इस रंग में रंग जाता है, वही सच्चा साथी होता है।
—
दोहा 54:
दोहा:
सुख का साधन प्रेम है, दुख का साधन है मोह।
जो मोह को छोड़ दे, वही सच्चा ज्ञानी हो।
अर्थ:
सुख का साधन प्रेम है, और दुख का साधन मोह है।
जो मोह को छोड़ देता है, वह सच्चा ज्ञानी होता है।
—
दोहा 55:
दोहा:
कबीर, दुनिया की बातें, जैसे बादल की छाया।
जो ध्यान में लिपटा, वही है सच्चा साया।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, दुनिया की बातें बादल की छाया की तरह हैं।
जो ध्यान में लिपटा रहता है, वही सच्चा साथी होता है।
—
दोहा 56:
दोहा:
जो सच्चा प्रेम करे, उसके मन में गहराई।
जो दिखावे का प्रेम करे, उसकी आत्मा है खाली।
अर्थ:
जो सच्चा प्रेम करता है, उसके मन में गहराई होती है।
जो दिखावे का प्रेम करता है, उसकी आत्मा खाली होती है।
—
दोहा 57:
दोहा:
ध्यान में जो रम जाए, वही सच्चा साधक।
जो विक्षिप्त मन रखे, वह है बुरा भाग्य।
अर्थ:
जो ध्यान में रम जाता है, वह सच्चा साधक होता है।
जो विक्षिप्त मन रखता है, वह बुरे भाग्य का होता है।
—
दोहा 58:
दोहा:
हरि का नाम जपने से, मन में शांति मिले।
शांति में है सुख, दुख से दूर रहे।
अर्थ:
हरि का नाम जपने से मन में शांति मिलती है।
शांति में सुख है, और दुख से दूर रहने का मार्ग है।
—
दोहा 59:
दोहा:
संसार की माया में, मत खुद को खोना।
सच्चाई की राह पर, हर पल चलना।
अर्थ:
संसार की माया में मत खो जाओ।
सच्चाई की राह पर हर पल चलना चाहिए।
—
दोहा 60:
दोहा:
जो चुप रहकर सच्चाई, वो है सच्चा प्रेमी।
जो बोलता है बुरी बात, वह है झगड़ालू।
अर्थ:
जो चुप रहकर सच्चाई का पालन करता है, वह सच्चा प्रेमी होता है।
जो बुरी बातें बोलता है, वह झगड़ालू होता है।
—
दोहा 61:
दोहा:
कबीर, ध्यान में लगे रहो, सच्चाई का ज्ञान पाओ।
ज्ञान में है प्रकाश, जिससे हर कोई जगाओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, ध्यान में लगे रहो और सच्चाई का ज्ञान पाओ।
ज्ञान में प्रकाश है, जिससे सबको जगाना चाहिए।
—
दोहा 62:
दोहा:
सुख-दुख सब एक समान, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझे, वही सच्चा मित्र है।
अर्थ:
सुख और दुख दोनों एक समान हैं, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझता है, वही सच्चा मित्र होता है।
—
दोहा 63:
दोहा:
संसार के रंग में, रंग जाने वाले।
जो रंग में रंग गए, वही सच्चे सच्चे।
अर्थ:
संसार के रंग में जो रंग जाते हैं, वही सच्चे होते हैं।
जो इस रंग में रंग जाते हैं, वही सच्चे होते हैं।
—
दोहा 64:
दोहा:
जो सबको अपनाए, वही सच्चा संत।
जो भेदभाव करे, वह है अधर्म का संत।
अर्थ:
जो सभी को अपनाता है, वही सच्चा संत होता है।
जो भेदभाव करता है, वह अधर्म का संत है।
—
दोहा 65:
दोहा:
कबीर, मन की बात कहो, दिल में जो है छिपा।
जो छिपा है दिल में, वही सच्चा है अपना।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन की बात कहो, जो दिल में छिपा है।
जो दिल में छिपा है, वही सच्चा अपना होता है।
—
दोहा 66:
दोहा:
जो सच्चाई से जिए, वही जीवन में चमके।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगें।
अर्थ:
जो सच्चाई से जीते हैं, वे जीवन में चमकते हैं।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगते हैं।
—
दोहा 67:
दोहा:
साधु संगति से जीवन, हो जाता है सुखदायक।
जो साधु से दूर भागे, वह है दुख का भाग्य।
अर्थ:
साधु की संगति से जीवन सुखदायक हो जाता है।
जो साधु से दूर भागता है, उसका भाग्य दुखमय होता है।
—
दोहा 68:
दोहा:
कबीर, प्रेम का जल भर लो, मन को शुद्ध करो।
जब मन शुद्ध होगा, तब हरि को पाओगे।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, प्रेम का जल भरकर मन को शुद्ध करो।
जब मन शुद्ध होगा, तब तुम भगवान को पाओगे।
—
दोहा 69:
दोहा:
जो मन में संतोष है, वही सच्चा सुखी।
जो इच्छाओं में फंसा, वह है दुखी भारी।
अर्थ:
जो मन में संतोष रखता है, वह सच्चा सुखी होता है।
जो इच्छाओं में फंसा रहता है, वह भारी दुखी होता है।
—
दोहा 70:
दोहा:
संसार में सबके साथ, प्रेम का बंधन बनाओ।
जो प्रेम से जुड़े, वही सच्चा मित्र पाओ।
अर्थ:
संसार में सबके साथ प्रेम का बंधन बनाओ।
जो प्रेम से जुड़े हैं, वही सच्चा मित्र होते हैं।
—
दोहा 71:
दोहा:
कबीर, जो मन में प्रेम रखे, वह हरि का प्यारा।
जो द्वेष रखे मन में, वह है दुख का कर्ता।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, जो मन में प्रेम रखता है, वह भगवान का प्रिय होता है।
जो मन में द्वेष रखता है, वह दुख का कारण बनता है।
—
दोहा 72:
दोहा:
जो देखता है खुद को, वही सच्चा ज्ञानी।
जो केवल बाहरी जग में, वह है बुरा भाग्य।
अर्थ:
जो खुद को देखता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
जो केवल बाहरी जग में रहता है, वह बुरे भाग्य का होता है।
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दोहा 73:
दोहा:
सच्चाई की राह पर, चलो सदा ध्यान से।
जो ध्यान में रहते हैं, वे सुख में रहते हैं।
अर्थ:
सच्चाई की राह पर हमेशा ध्यान से चलो।
जो ध्यान में रहते हैं, वे हमेशा सुख में रहते हैं।
—
दोहा 74:
दोहा:
सुख का साधन प्रेम है, दुख का साधन है मोह।
जो मोह को छोड़ दे, वही सच्चा ज्ञानी हो।
अर्थ:
सुख का साधन प्रेम है, और दुख का साधन मोह है।
जो मोह को छोड़ देता है, वह सच्चा
ज्ञानी होता है।
—
दोहा 75:
दोहा:
जो साधु संगति करे, उसका जीवन सुखमय।
जो संसार में भटकता, वह है दुख का साथी।
अर्थ:
जो साधु की संगति करता है, उसका जीवन सुखमय होता है।
जो संसार में भटकता है, वह दुख का साथी होता है।
—
दोहा 76:
दोहा:
कबीर, मन को साधकर प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरपूर जीवन, सच्चा सुख दे जाएगा।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन को साधकर प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरा जीवन ही सच्चा सुख देगा।
—
दोहा 77:
दोहा:
जो सच्चा प्रेम करे, उसका मन है गहरा।
जो दिखावे का करे प्रेम, उसकी आत्मा है खौफ।
अर्थ:
जो सच्चा प्रेम करता है, उसका मन गहरा होता है।
जो दिखावे का प्रेम करता है, उसकी आत्मा में खौफ होता है।
—
दोहा 78:
दोहा:
जो जोड़े मन से मन, वही सच्चा साथी।
जो दूर जाए मन से, वह है झगड़ालू।
अर्थ:
जो मन से मन को जोड़ता है, वही सच्चा साथी होता है।
जो मन से दूर जाता है, वह झगड़ालू होता है।
—
दोहा 79:
दोहा:
कबीर, प्रेम का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर, हरि का मिलन पाओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, प्रेम का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर चलने से भगवान का मिलन होता है।
—
दोहा 80:
दोहा:
सुख-दुख सब एक समान, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझे, वही सच्चा मित्र है।
अर्थ:
सुख और दुख दोनों एक समान हैं, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझता है, वही सच्चा मित्र होता है।
—
दोहा 81:
दोहा:
संसार की माया में, मत खुद को खोना।
सच्चाई की राह पर, हर पल चलना।
अर्थ:
संसार की माया में मत खो जाओ।
सच्चाई की राह पर हर पल चलना चाहिए।
—
दोहा 82:
दोहा:
जो प्रेम की राह चले, वही है सच्चा संत।
जो द्वेष से भरा है, वह है अधर्म का संत।
अर्थ:
जो प्रेम की राह पर चलता है, वही सच्चा संत होता है।
जो द्वेष से भरा होता है, वह अधर्म का संत है।
—
दोहा 83:
दोहा:
कबीर, मन की बात कहो, दिल में जो है छिपा।
जो छिपा है दिल में, वही सच्चा है अपना।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन की बात कहो, जो दिल में छिपा है।
जो दिल में छिपा है, वही सच्चा अपना होता है।
—
दोहा 84:
दोहा:
जो सच्चाई से जिए, वही जीवन में चमके।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगें।
अर्थ:
जो सच्चाई से जीते हैं, वे जीवन में चमकते हैं।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगते हैं।
—
दोहा 85:
दोहा:
साधु संगति से जीवन, हो जाता है सुखदायक।
जो साधु से दूर भागे, वह है दुख का भाग्य।
अर्थ:
साधु की संगति से जीवन सुखदायक हो जाता है।
जो साधु से दूर भागता है, उसका भाग्य दुखमय होता है।
—
दोहा 86:
दोहा:
कबीर, सच्चाई का जीवन, हर किसी को सिखाओ।
सच्चाई में है सुख, सभी को बताओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, सच्चाई का जीवन सबको सिखाओ।
सच्चाई में ही सुख है, यह सभी को बताओ।
—
दोहा 87:
दोहा:
जो दिल से कर दे प्रेम, वही सच्चा प्यारा।
जो दिखावे का करे प्रेम, वह है सच्चा दुश्वारा।
अर्थ:
जो दिल से प्रेम करता है, वही सच्चा प्यारा होता है।
जो दिखावे का प्रेम करता है, वह सच्चा दुश्वारा होता है।
—
दोहा 88:
दोहा:
कबीर, प्रेम का जल भरकर, मन को शुद्ध करो।
जब मन शुद्ध होगा, तब हरि को भी पा लोगे।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, प्रेम का जल भरकर मन को शुद्ध करो।
जब मन शुद्ध होगा, तब तुम भगवान को भी पा लोगे।
—
दोहा 89:
दोहा:
जो मन में संतोष है, वही सच्चा सुखी।
जो इच्छाओं में लिपटा, वह है दुखी भारी।
अर्थ:
जो मन में संतोष रखता है, वह सच्चा सुखी होता है।
जो इच्छाओं में लिपटा रहता है, वह भारी दुखी होता है।
—
दोहा 90:
दोहा:
संसार में सबके साथ, प्रेम का बंधन बनाओ।
जो प्रेम से जुड़े, वही सच्चा मित्र पाओ।
अर्थ:
संसार में सबके साथ प्रेम का बंधन बनाओ।
जो प्रेम से जुड़े हैं, वही सच्चा मित्र होते हैं।
—
दोहा 91:
दोहा:
कबीर, जो मन में प्रेम रखे, वह हरि का प्यारा।
जो द्वेष रखे मन में, वह है दुख का कर्ता।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, जो मन में प्रेम रखता है, वह भगवान का प्रिय होता है।
जो मन में द्वेष रखता है, वह दुख का कारण बनता है।
—
दोहा 92:
दोहा:
जो देखता है खुद को, वही सच्चा ज्ञानी।
जो केवल बाहरी जग में, वह है बुरा भाग्य।
अर्थ:
जो खुद को देखता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
जो केवल बाहरी जग में रहता है, वह बुरे भाग्य का होता है।
—
दोहा 93:
दोहा:
सच्चाई की राह पर, चलो सदा ध्यान से।
जो ध्यान में रहते हैं, वे सुख में रहते हैं।
अर्थ:
सच्चाई की राह पर हमेशा ध्यान से चलो।
जो ध्यान में रहते हैं, वे हमेशा सुख में रहते हैं।
—
दोहा 94:
दोहा:
सुख का साधन प्रेम है, दुख का साधन है मोह।
जो मोह को छोड़ दे, वही सच्चा ज्ञानी हो।
अर्थ:
सुख का साधन प्रेम है, और दुख का साधन मोह है।
जो मोह को छोड़ देता है, वह सच्चा ज्ञानी होता है।
—
दोहा 95:
दोहा:
जो साधु संगति करे, उसका जीवन सुखमय।
जो संसार में भटकता, वह है दुख का साथी।
अर्थ:
जो साधु की संगति करता है, उसका जीवन सुखमय होता है।
जो संसार में भटकता है, वह दुख का साथी होता है।
—
दोहा 96:
दोहा:
कबीर, प्रेम का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर, हरि का मिलन पाओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, प्रेम का दीप जलाकर चलो।
सच्चाई की राह पर चलने से भगवान का मिलन होता है।
—
दोहा 97:
दोहा:
सुख-दुख सब एक समान, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझे, वही सच्चा मित्र है।
अर्थ:
सुख और दुख दोनों एक समान हैं, जैसे दिन और रात।
जो सच्चाई को समझता है, वही सच्चा मित्र होता है।
—
दोहा 98:
दोहा:
संसार की माया में, मत खुद को खोना।
सच्चाई की राह पर, हर पल चलना।
अर्थ:
संसार की माया में मत खो जाओ।
सच्चाई की राह पर हर पल चलना चाहिए।
—
दोहा 99:
दोहा:
जो प्रेम की राह चले, वही है सच्चा संत।
जो द्वेष से भरा है, वह है अधर्म का संत।
अर्थ:
जो प्रेम की राह
पर चलता है, वही सच्चा संत होता है।
जो द्वेष से भरा होता है, वह अधर्म का संत है।
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दोहा 100:
दोहा:
कबीर, मन की बात कहो, दिल में जो है छिपा।
जो छिपा है दिल में, वही सच्चा है अपना।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन की बात कहो, जो दिल में छिपा है।
जो दिल में छिपा है, वही सच्चा अपना होता है।
—
दोहा 101:
दोहा:
सत्य बोलो, सच्चा काम करो, मन को शुद्ध रखो।
जो सच्चाई में जीता, वही सच्चा सुख पाता।
अर्थ:
सत्य बोलो, सच्चा कार्य करो और मन को शुद्ध रखो।
जो सच्चाई में जीता है, वही सच्चा सुख पाता है।
—
दोहा 102:
दोहा:
कबीर, मोह की जंजीर तोड़ो, प्रेम का दीप जलाओ।
प्रेम से ही सच्चाई, हर दिल में बसाओ।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मोह की जंजीर तोड़ो और प्रेम का दीप जलाओ।
प्रेम से ही सच्चाई हर दिल में बसाओ।
—
दोहा 103:
दोहा:
जो मन को वश में करे, वही सच्चा ज्ञानी।
जो मन की बात न समझे, वह है बुरा भाग्य।
अर्थ:
जो मन को वश में करता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है।
जो मन की बात नहीं समझता, वह बुरे भाग्य का होता है।
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दोहा 104:
दोहा:
संसार के रंग में, मत खुद को खोना।
सच्चाई की राह पर, चलो सदा एकाग्र।
अर्थ:
संसार के रंग में मत खो जाओ।
सच्चाई की राह पर हमेशा एकाग्र होकर चलो।
—
दोहा 105:
दोहा:
सुख का साधन प्रेम है, दुख का साधन है द्वेष।
जो प्रेम में जीता है, वही सच्चा सुख पाता है।
अर्थ:
सुख का साधन प्रेम है, और दुख का साधन द्वेष है।
जो प्रेम में जीता है, वही सच्चा सुख पाता है।
—
दोहा 106:
दोहा:
कबीर, जो प्रेम से भरा है, उसका मन है गहरा।
जो दिखावे का प्रेम करे, उसकी आत्मा है खोखली।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, जो प्रेम से भरा है, उसका मन गहरा होता है।
जो दिखावे का प्रेम करता है, उसकी आत्मा खोखली होती है।
—
दोहा 107:
दोहा:
जो ध्यान में रम जाए, वही सच्चा साधक।
जो विक्षिप्त मन रखे, वह है दुख का भाग्य।
अर्थ:
जो ध्यान में रम जाता है, वह सच्चा साधक होता है।
जो विक्षिप्त मन रखता है, वह बुरे भाग्य का होता है।
—
दोहा 108:
दोहा:
हरि का नाम जपने से, मन में शांति मिले।
शांति में है सुख, दुख से दूर रहे।
अर्थ:
हरि का नाम जपने से मन में शांति मिलती है।
शांति में सुख है, और दुख से दूर रहने का मार्ग है।
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दोहा 109:
दोहा:
जो सच्चाई से जिए, वही जीवन में चमके।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगें।
अर्थ:
जो सच्चाई से जीते हैं, वे जीवन में चमकते हैं।
जो झूठ से जीते हैं, वे हमेशा दुख भोगते हैं।
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दोहा 110:
दोहा:
कबीर, मन को साधकर प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरपूर जीवन, सच्चा सुख दे जाएगा।
अर्थ:
कबीर कहते हैं, मन को साधकर प्रेम का जल भर लो।
प्रेम से भरा जीवन ही सच्चा सुख देगा।
इस ब्लॉग पोस्ट में प्रस्तुत कबीर दास जी के दोहे हमें जीवन के गहरे सत्य और प्रेम की गहराई को समझने में मदद करते हैं। उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उनके समय में थीं। हम सभी को अपने जीवन में सच्चाई और प्रेम को अपनाना चाहिए, ताकि हम सच्चे सुख की ओर अग्रसर हो सकें। कबीर दास जी के इन अनमोल विचारों को अपने जीवन में उतारकर हम अपनी आत्मा को शुद्ध और समृद्ध बना सकते हैं।
आशा है कि आपको ये दोहे और उनके अर्थ पसंद आए होंगे। आपके विचार और प्रतिक्रियाएं हमें अवश्य बताएं!
FAQ
प्रश्न 1: कबीर दास जी कौन थे?
उत्तर: कबीर दास जी 15वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध संत, कवि और विचारक थे। उन्होंने अपने जीवन में समाज में व्याप्त अंधविश्वास और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और प्रेम और सच्चाई का संदेश दिया।
प्रश्न 2: कबीर दास जी के दोहे किस विषय पर आधारित हैं?
उत्तर: कबीर दास जी के दोहे जीवन, प्रेम, सच्चाई, आध्यात्मिकता, और मानवता के गहरे विचारों पर आधारित हैं। वे सरल भाषा में गहन अर्थों को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 3: क्या इन दोहों का कोई विशेष अर्थ होता है?
उत्तर: हां, प्रत्येक दोहे का एक विशेष अर्थ होता है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने में मदद करता है। इनका अध्ययन करने से हमें आत्मिक शांति और ज्ञान प्राप्त होता है।
प्रश्न 4: कबीर दास जी के दोहे कैसे जीवन में लागू किए जा सकते हैं?
उत्तर: कबीर दास जी के दोहे हमें प्रेम, सच्चाई और एकता की ओर प्रेरित करते हैं। इन्हें अपने जीवन में अपनाकर हम अपने विचारों और कार्यों में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
प्रश्न 5: क्या मैं इन दोहों का उपयोग कर सकता हूं?
उत्तर: बिल्कुल! आप इन दोहों का उपयोग अपने विचारों, लेखों, या सामाजिक मीडिया पर साझा करने के लिए कर सकते हैं। ये दोहे प्रेरणा देने के लिए बेहतरीन हैं।
प्रश्न 6: क्या आप और कबीर दास जी के दोहे साझा कर सकते हैं?
उत्तर: हां, अगर आप और दोहे चाहते हैं, तो कृपया हमें बताएं। हम और भी दोहे और उनके अर्थ आपके लिए प्रस्तुत कर सकते हैं।
प्रश्न 7: कबीर दास जी के दोहे क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: कबीर दास जी के दोहे हमारे समाज में सच्चाई, प्रेम और समानता का संदेश फैलाते हैं। ये हमें सोचने पर मजबूर करते हैं और आत्म-विश्लेषण की प्रेरणा देते हैं।
हमने आपको “कबीर दास जी के दोहे 100+ प्रेरणादायक दोहे: जीवन, प्रेम और सच्चाई की सीख” के बारे में पूरी जानकारी दी है। यह ट्यूटोरियल आपके लिए उपयोगी होगा। आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट कर के जरूर बताइये और अपने सुझाव को हमारे साथ शेयर करें ।
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